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अन्तर् हृदय में श्रद्धा को भव्य भावना उद्बुद्ध हुई तो मैं अपना प्रयत्न पूर्ण सफल समझूगा।
परम श्रद्धय महामहिम राष्ट्रसन्त आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषि जी महाराज जो श्रद्धा के देवता हैं, जिनका जीवन श्रद्धा का साक्षात रूप है। उनकी हार्दिक भावना थी कि मैं श्रद्धा पर कुछ लिखू जिससे कि भूलेभटके व्यक्तियों को सही मार्ग-दर्शन मिल सके । आचार्य प्रवर के अमृतमहोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में मेरा यह लघु प्रयास प्रबुद्ध पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। साथ ही परम आराध्य देव सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० की असीम कृपा मुझ पर रही है। वे मेरे जीवन निर्माण के कलाकार हैं। उन्हीं की कृपा का सफल है कि मैं साहित्य और संघ की सेवा में संलग्न हूँ। ज्येष्ठ भगिनी साध्वीरत्न पुष्पवती जी की पावन प्रेरणा भी कार्य करने में उत्प्रेरक रही है । श्री रमेश मुनि, श्री राजेन्द्रमुनि, श्री दिनेश मूनि, श्री सुरेन्द्र मुनि प्रभति मूनि मंडल की सेवा, सद्भावनाएँ भी सहयोगी रही हैं। स्नेहमूर्ति, कलम के धनी मुनि श्री नेमीचन्द जी म० को विस्मृत नहीं हो सकता। उन्होंने ग्रन्थ की पाण्डुलिपि को निहारकर अपने अनमोल सुझाव प्रदान किये। ज्ञात और अज्ञात रूप में जिनका सहयोग प्राप्त हुआ है, उन सभी को हार्दिक साधुवाद प्रदान करता हूँ।
--उपाचार्य देवेन्द्र मुनि जैन स्थानक महावीर भवन, इन्दौर भाद्रपद कृ. १३ शुक्र. दिनांक ६-६-८, पर्युषण पर्व
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