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________________ १८ | सद्धा परम दुल्लहा होती है । जो व्यक्ति किसी मंत्र या यंत्र पर पूर्ण विश्वास रखकर विधिपूर्वक जाप करता है, या उस मंत्र, यंत्र की आराधना करता है तो उसे उस मंत्र या यंत्र का वास्तविक फल अवश्य मिलता है । जिस विषय से या व्यक्ति के भविष्य से जो अनभिज्ञ हो, उन सब विषयों पर या व्यक्तियों पर विश्वास करना ही पड़ता है । जितने अधिक विश्वास के साथ व्यक्ति उस विषय में या उस क्षेत्र बढ़ता है, उतनी ही शीघ्र सफलता उस विषय में या उस व्यक्ति से प्राप्त कर पाता है । कल्पना कीजिए एक व्यक्ति जंगल के रास्ते से जा रहा है, अकस्मात् सामने से एक चरवाहा आकर कहता है -- आगे मत बढ़ो, आगे रास्ते पर एक भयंकर सिंह बैठा है । उस समय वह यात्री उक्त चरवाहे की बात पर विश्वास न करके आगे बढ़ता है और यह कहता है कि मैं स्वयं आगे जाकर देखने के पश्चात् ही तुम्हारी बात पर विश्वास कर सकता हूँ, अभी नहीं । तो बताइये उसके उक्त अविश्वास का क्या नतीजा आ सकता है ? यही कि इस सुर्खता का फल यह हो सकता है कि वह उस सिंह का भक्ष्य बन जाए । किन्तु दूरदर्शी एवं समझदार व्यक्ति उस गँवार चरवाहे की बात पर अविश्वास करने की मूर्खता नहीं करता । वह उस चरवाहे पर अवश्य विश्वास कर लेगा । इसी प्रकार जीवन के अन्य अज्ञात क्षेत्रों में भी विश्वास करना पड़ता है । व्यावहारिक क्षेत्र में विश्व का तंत्र विश्वास के बिना चल हो नहीं सकता । कहाँ विश्वास, कहाँ अविश्वास ? कल्पना कीजिए, एक व्यक्ति जवाहरात का सच्चा परीक्षक है, वह हीरों की परख करने में निष्णात है, उसने किसी हीरे की वास्तविक परीक्षा कर ली । अब उसकी परीक्षा के विरुद्ध कोई साधारण मनुष्य, जिसे हीरों की परख करनी नहीं आती, वह बोलता है तो उस पर बिलकुल विश्वास नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार कोई देवी-देवों के नाम पर, यज्ञ या ईश्वर के नाम पर पशुवध ( पशुबलि ) में धर्म बताता है, अर्थात् - हिंसा में धर्म बताता है, वहाँ कोई भी समझदार व्यक्ति उसकी बात पर विश्वास नहीं कर सकता । निष्कर्ष यह है कि व्यावहारिक क्षेत्र में उस विषय के अनभिज्ञ पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भी लौकिक स्वार्थी, या राग-द्व ेष-अज्ञान से ग्रस्त व्यक्ति पर विश्वास नहीं किया जा सकता । जिस प्रकार व्यावहारिक क्षेत्र में उस विषय के विशेषज्ञ या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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