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________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन [१३] श्री ऋषभदेव सर्वार्थसिद्ध की आयु समाप्त होने पर सर्वप्रथम वज्रनाभ का जीव च्युत हुआ और वह जम्बूद्वीपस्थ भरतक्षेत्र की इक्ष्वाकुभूमि में अन्तिम कुलकर " नाभि " की पत्नी मरुदेवी की कुक्षि में आषाढ़ कृष्णा चतुर्थी को उत्तराषाढ़ नक्षत्र के योग में उत्पन्न हुआ | १३ चैत्र कृष्णा अष्टमी संलेखनाद्वयपुरः सरमेकधीरास्, प्रपद्य । ते पादपोपगमनानशनं सर्वार्थसिद्धिमधिगम्य दिवंत्रयस्त्रिशाब्ध्यायुषः सुरवराः षडपिह्यभूवन् ॥ - त्रिषष्ठि० १|१|११ (ग) उपशान्तगुणस्थाने कृतप्राणविसर्जनः । सर्वार्थसिद्धिमासाद्य सम्प्रापत् सोऽहमिन्द्रताम् ॥ - महापुराण १११।११।२३७ (घ) चक्रवर्ती स्वकालं स्वपञ्चभावनकं तपः । कृत्वान्ते श्रीप्रभं शैलमारुह्य प्राक्तनैः सह || आराधनां तत्र चतुष्प्रकाशमाराध्य मासानशनो जगाम । सर्वार्थसिद्धि स निनाय तत्र कालं त्रयस्त्रिशदथार्णवानाम् ॥ - पुराणसार ७८ ७६/२/३२ १३८. उववातो सव्वट्ट े सव्वेसि पढमतो चुतो उसभो । रिक्खेण असाढाहिं असाढबहुले चउत्थी | Jain Education International - आवश्यक नियुक्ति गा० १८२ (ख) उस गं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, सत्तमे पक्खे, आसाढबहुले, तस्स आसाढबहुलस्स चउत्थीपक्खेणं सव्वसिद्धाओ महाविमाणाओ तेत्तीस सागरोमद्वितीयाओ अरणंतरं चयं चत्ता इहेव जम्बुद्दीवे भारहे वासे इक्खागभूमीए नाभिस्स कुलगरस्स मरुदेवीए भारियाए पुव्वरत्ताव रत्तकालसमयंसि आहारवक्कंतीए जाव गव्भताए Satara | -- कल्पसूत्र, सू० १६१ । पृ० ५६ (ग) आषाढमासस्य पक्षे, प्रवृत्ते धवलेतरे । चतुर्थ्यामुत्तराषाढानक्षत्रस्थे निशाकरे || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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