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श्री ऋषभ पूर्वभव
कहा-प्रत्येक वस्तु का मूल्य एक-एक लाख दीनार है । वे उस मूल्य को देने के लिए ज्योंही प्रस्तुत हुए, त्योंही श्रेष्ठी ने प्रश्न किया-ये अमूल्य वस्तुएँ किस लिए चाहिएँ ? उन्होंने बताया--मुनि की चिकित्सा के लिए । मुनि का नाम सुनते ही श्रेष्ठी सोचने लगा कि "इन युवकों की धार्मिक निष्ठा अपूर्व है।"१०९ उसने बिना मूल्य लिये औषधियाँ देदीं। वे उन वस्तुओं को लेकर वैद्य के पास गये। __जीवानन्द वैद्य भी अपने स्नेही साथियों के साथ उन औषधियों को तथा मृत-गोचर्म को लेकर उद्यान में पहुँचा, जहाँ मुनि ध्यान मुद्रा में अवस्थित थे। उन्होंने मुनि को वन्दन किया और उनकी स्वीकृति
(ख) आवश्यकचूणि पृ० १३२ ।। (ग) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति ११६ ।
आनेष्यामो वयमिति, प्रोच्य पञ्चाऽपि तत्क्षणम् । ते ययूविपणिश्रणी स्वस्थानं सोऽप्यगान्मुनिः ।। रत्नकम्बल-गोशीर्ष, मूल्यमादाय यच्छ नः । इत्युक्तस्तैर्वणिग्वृद्धस्ते ददानोऽब्रवीदिदम् ।।
—त्रिषष्ठि ११७४७-७४८ १०६. ततो वाणियगो ससंभन्तो भणति--कि देमि ? ते भणन्ति-कम्बल
रयरणं गोसीसचन्दणं च । तेण भण्णइ कि एएहि कज्जं? ते भणन्ति साहुस्स किरिया कायव्वा । तेण भण्णइ–एवं, तो अलाहि मम मोल्लेणं, इहरहा चेव गेण्हह, करेह साहुणो किरियं ।
-आवश्यक मल० पृ० १५६ (ख) तेल्लं तेगिच्छिसुतो कम्बलगं चन्दणं च वाणियतो ।
-आवश्यक नियुक्ति गा० १७१ (ग) आवश्यक चूणि, पृ० १३३ (घ) आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति पृ० ११६ ।
(ङ) त्रिषष्ठि १११७५०-७५६ । ११०. (क) ते विज्जसुयप्पभिइणो सो घेतूण ताणि ओसहाणि गया
साहुणो पासं जत्थ सो उज्जाणे पडिमं ठितो, पासन्ति पडिमागवं साहुँ।
-आवश्यक मल० ५० १५६
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