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________________ श्री ऋषभ पूर्वभव किया और अपने प्रति स्नेहमूर्ति पण्डिता परिचारिका को प्रदान किया। पण्डिता परिचारिका प्रस्तुत चित्रपट को लेकर राजपथ पर, जहाँ चक्रवर्ती वज्रसेन की वर्षगाँठ मनाने हेतु अनेक देशों के राजकुमार आ-जा रहे थे, खड़ी होगई ।६९ वज्रजंघ राजकुमार भी, जो पूर्वभव में ललिताङ्ग देव था, वहाँ आया हुआ था। उसने ज्यों ही वह चित्र-पट्ट देखा त्योंही उसे भी पूर्वभव की स्मृति जागृत हो गई। उसने चित्रपट्ट का सारा इतिवृत्त पण्डिता परिचारिका को बताया, और पण्डिता परिचारिका ने श्रीमती को निवेदन किया। श्रीमती की प्रेरणा से परिचारिका ने चक्रवर्तीसम्राट् वज्रसेन को श्रीमती और वज्रजंघ के पूर्वभव का परिचय प्रदान किया। चक्रवर्ती वज्रसेन ने 'श्रीमती' का वज्रजंघ के साथ पाणिग्रहण कर दिया। ६८. मया विलिखितं पूर्वभवसम्बन्धिपट्टकम् । -महापुराण श्लो० १७० पर्व ६, पृ० १३३ ६६. चक्रिणो वज्रसेनस्य वर्षग्रन्थिरभूत् तदा । प्रस्तावादाययुस्तत्र, भूयांसो वसुधाधवाः ॥ पण्डिता राजमार्गेऽथ, तमालेख्यपटं स्फुटम् । विस्तार्य तस्थौ श्रीमत्या मनोरथमिवाऽल घुम् ।। -त्रिषष्ठि ११११६४६-६५० ७०. अत्रास्मद्भवसम्बन्धः पूर्वोऽलेखि सविस्तरम् । श्रीप्रभाधिपतां साक्षात् पश्यामीवेह मामिकाम् ।। अहो स्त्रीरूपमत्रेद नितरामभिरोचते । स्वयम्प्रभाङ्गसंवादि विचित्राभरणोज्ज्वलम् ॥ -महापुराण श्लो० १२१-१२२ पर्व ७, पृ० १४८ (ख) आमेति पण्डिताऽप्युक्ता श्रीमत्याः पार्श्वमेत्य च । तत्सर्वमाख्यत् हृदयविशल्यकरणौषधम् ।। -त्रिषष्ठि १३१६८२ ७१. पितुर्व्यज्ञपयत् तच्च, श्रीमती पण्डितामुखा । अस्वातन्त्र्यं कुलस्त्रीणां, धर्मो नैसर्गिको यतः ॥ -त्रिषष्ठि १।१।६८३ ७२. तदगिरामुदितः सद्यः स्तनितेनेव वहिणः । वनसेननुपो वनजङ्घमाजूहवत् ततः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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