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________________ २२ ऋषभदेव : एक परिशीलन च्यव कर मानवलोक में निर्नामिका नामक बालिका होती है और वहाँ केवली भगवान् के उपदेश से श्राविका बन कर आयु पूर्ण कर पुनः उसी कल्प में ललिताङ्ग देव की प्रिया स्वयंप्रभा देवी बनती है । १७ ललिताङ्ग देव मोह की प्रबलता के कारण पुनः उसमें आसक्त बनता है ।“ अन्त में ललिताङ्ग देव नमस्कार महामन्त्र का जाप करते हुए आयु पूर्ण करता है । ५९ [६] वज्रजङ्घ वहाँ से च्यवकर ललिताङ्ग देव का जीव जम्बूद्वीप की पुष्कलावती विजय में लोहार्गल नगर के अधिपति सुवर्णजंघ सम्राट् की पत्नीलक्ष्मी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । वज्रजंघ नाम दिया गया । ६१ ५७. ५८. ५६. ६०. सुचिरं निरतीचारं पालयित्वा व्रतं सुधीः । ऐशाने दृढधर्माख्य, इन्द्रसामानिकोऽभवत् ॥ स पूर्वभवसम्बन्धाद् बन्धुवत् प्रेमबन्धुरः । आश्वासयितुमित्यूचे, ललिताङ्गमुदारधीः ।। - त्रिषष्ठि १।११५२०-५२२ च । पल्योपमपृथक्त्वावशिष्टमायुर्यदास्थ तदोदपादि पुण्यैः स्वैः प्रेयस्यस्य स्वयंप्रभा ।। - - महापुराण श्लो० २८६ ५०५, पृ० ११८ सैषा स्वयंप्रभाऽस्यासीत् परा सौहार्दभूमिका | चिरं मधुकरस्येव प्रत्यग्रा चूतमञ्जरी ॥ -- महापुराण श्लो० २८८ पर्व ० ५ पृ० ११८ नमस्कारपदान्युच्चैः अनुध्यायन्नसाध्वसः । साध्वसौ मुकुलीकृत्य करौ प्रायाद श्यताम् ॥ - महापुराण श्लो० २५, पर्व० ६, पृ० १२२ (क) पुक्खलावइविजए लोहग्गलणगरसामी वइरजंधो नाम राजा जाओ । Jain Education International - आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति० पृ० ११६ (ख) ततो आउक्खए चइऊण इहेव जंबुद्दीचे दीवे पुक्खलाइविजए लोहग्गल नगरसामी वइरजंघो नाम राया जातो । - आवश्यक मल० वृ० १५८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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