SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री ऋषभपूर्वभव : एक विश्लेषण श्रमण संस्कृति श्रमण संस्कृति आर्यावर्त की एक विशिष्ट और महान् संस्कृति हैं, जो अज्ञात काल से ही विश्व को प्राध्यात्मिक विचारों का पाथेय प्रदान करती रही है । वे विमल विचार काल्पनिक वायवीय न होकर जीवनप्रसूत हैं, अनुभवपरिचालित हैं । डाक्टर एल. पी. टेसीटरी के शब्दों में- “ इसके मुख्य तत्त्व विज्ञान शास्त्र के आधार पर रचे हुए हैं; यह मेरा अनुमान ही नहीं बल्कि अनुभवमूलक पूर्ण दृढविश्वास है कि ज्यों-ज्यों पदार्थविज्ञान उन्नति करता जायेगा त्यों-त्यों जैन धर्म के सिद्धान्त सत्य सिद्ध होते जायेंगे ।" एक फुलवाड़ी श्रमण संस्कृति एक अद्भुत फुलवाड़ी हैं, जिसमें भक्तियोग की भव्यता, ज्ञानयोग का गौरव, कर्मयोग की कठिनता, अध्यात्म योग का आलोक, तत्त्वज्ञान की तलस्पर्शिता, दर्शन की दिव्यता, कला की कमनीयता, भाषा की प्रांजलता, भावों की गम्भीरता और चरित्रचित्रण के फूल खिल रहे हैं, महक रहे हैं, जो अपनी सहज सलौनी सुवास से जन-जन के मन को मुग्ध कर रहे हैं । आस्तिक्य श्रमण संस्कृति की विचारधारा का आधार प्रास्तिकता है । श्रास्तिक और नास्तिक शब्दों को सुधी विज्ञों ने जिस प्रकार विभिन्न विधाओं में संजोया है, पिरोया है, उससे वह चिरचिन्त्य पहेली बनगया है । प्रस्तुत पहेली को संस्कृत व्याकरण के समर्थ आचार्य पाणिनि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy