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तीर्थकर जीवन
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थे। वे ही निर्ग्रन्थ तीर्थङ्कर ऋषभ जैनों के प्राप्तदेव थे।3° धम्म पद में ऋषभ को सर्वश्रेष्ठ वीर कहा है ।७१
भारत के अतिरिक्त बाह्य देशो में भी भगवान् ऋषभदेव का विराट् व्यक्तित्व विविध रूपों में चमका है । प्रथम उन्होंने कृषिकला का परिज्ञान कराया, अतः वे "कृषि देवता" हैं। आधुनिक विद्वान् उन्हें “एग्रीकल्चरएज' मानते हैं ।३२ देशनारूपी वर्षा करने से वे "वर्षा के देवता' कहे गये हैं। केवल ज्ञानी होने से सूर्यदेव के रूप में मान्य हैं।
इस प्रकार भगवान् श्री ऋषभदेव का जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व विश्व के कोटि-कोटि मानवों के लिए कल्याणरूप, मंगलरूप और वरदानरूप रहा है। वे श्रमण संस्कृति और ब्राह्मण संस्कृति के आदि पुरुष हैं। भारतीय संस्कृति के ही नहीं, मानव संस्कृति के प्राद्य निर्माता हैं। उनके हिमालयसदृश विराट् जीवन पर दृष्टि डालते-डालते मानव का सिर ऊँचा हो जाता है और अन्तर भाव श्रद्धा से झुक जाता है।
३३०. प्रजापतेः सुतो नाभि तस्यापि आगमुच्यति ।
नाभिनो ऋषभपुत्रो वै सिद्धकर्म दृढ़वतः ॥ तस्यापि मणिचरो यक्षः सिद्धौ हेमवेत गिरो । ऋषभस्य भरतः पुत्रः सोऽपि मंजतान तदा जपेत ।। निर्ग्रन्थ तीर्थङ्कर ऋषभ निर्गन्थ रूपि ।
___ आर्यमंजु श्री मूलकल्प श्लो० ३६०-३६१-३६२ ३३१. उसभं पवरं वीरं ।
--धम्मपद ४२२ ३३२. व्हायस ऑव अहिंसा--भ० ऋषभ विशेषाङ्क, ले० डा० सांकलिया
आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रन्थ, द्वितीय खण्ड पृ० ४
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