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ऋषभदेव : एक परिशीलन उस संघ की स्थापना की है जिसमें पशु भी मानव के समान माने जाते थे और उनको कोई भी मार नहीं सकता था।३२६ ___श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री ऋषभ का जन्म रजोगुणी जनों को कैवल्य की शिक्षा देने के लिए हया था।३२७ जिन्होंने विषयभोगों की अभिलाषा करने के कारण अपने वास्तविक श्रेय से भूले-बिसरे मानवों को करुणावश निर्भय आत्म-लोक का उपदेश दिया और जो स्वयं निरन्तर अनुभव करने वाले प्रात्म-स्वरूप की प्राप्ति के द्वारा सब प्रकार की तृष्णा से मुक्त थे, उन भगवान् श्री ऋषभदेव को नमस्कार है।३२८
इस प्रकार हम देखते हैं कि भागवत में ही नहीं, किन्तु कूर्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण आदि वैदिक ग्रन्थों में उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण गाथाएँ उट्टङ्कित हैं ।
बौद्ध ग्रन्थ "मार्ग मंजुश्री मूलकल्प" में भारत के आदि सम्राटों में नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभ पुत्र भरत की गणना की गई है। उन्होंने हिमालय से सिद्धि प्राप्त की३२९, वे व्रतों को पालने में दृढ़
३२६. नास्य पशून् समानान् हिनस्ति ।
-अथर्ववेद ३२७. अयमवतारो रजसोपप्लुतकैवल्योपशिक्षणार्थम् ।
-श्रीमद्भागवत पंचम स्कन्ध, अध्या० ६ ३२८. नित्यानुभूतनिजलाभनिवृत्ततृष्णः.
श्रेयस्यतद्रचनया चिरसुप्तबुद्धः। लोकस्य यः करुणयाभयमात्मलोकमाख्यानमो भगवते ऋषभाय तस्मै ॥
-श्रीमद् भागवत ५।६।१६।५६६ ३२६. जैन दृष्टि से सिद्धि-स्थल अष्टापद है, हिमालय नहीं ।
-लेखक
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