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ऋषभदेव : एक परिशीलन
त्रयोदशी है और तिलोय पण्णत्ति:१६ व महापुराण के अनुसार माघकृष्णा चतुर्दशी है।
विज्ञों का मन्तव्य है कि उस दिन श्रमणों ने शिवगति प्राप्त भगवान् की संस्मति में दिन में उपवास रखा और रात्रि भर धर्म जागरण किया। अतः वह तिथि शिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हुई। 'शिव', मोक्ष, 'निर्वाण'-ये सभी पर्यायवाची शब्द हैं। __ ईशान संहिता में लिखा है कि माघ कृष्णा चतुर्दशी की महानिशा में कोटिसूर्यप्रभोपम भगवान् श्रादिदेव शिवगति प्राप्त हो जाने से शिव-इस लिंग से प्रकट हुए। जो निर्वाण के पूर्व प्रादिदेव कहे जाते थे वे अब शिवपद प्राप्त हो जाने से "शिव" कहलाने लगे।३१८
उत्तर प्रान्त में शिव-रात्रि पर्व फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी को मनाया जाता है तो दक्षिण प्रान्त में माघकृष्णा चतुर्दशी को। इस भेद का कारण यह है कि उत्तर प्रान्त में मास का प्रारम्भ कृष्ण पक्ष से मानते हैं और दक्षिण प्रान्त में शुक्ल पक्ष से । इस दृष्टि से दक्षिण प्रान्तीय माघ कृष्णा चतुर्दशी उत्तर प्रान्त में फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी हो जाती है। कालमाधवीय नागर खण्ड में प्रस्तुत मासवैषम्य का समन्वय करते हुए स्पष्ट लिखा है कि दाक्षिणात्य मानव के माघ मास
३१६. माघस्स किण्हि चोद्दसि पुवण्हे णिययजम्मणक्खत्ते अट्ठावयम्मि उसहो अजुदेण समं गओज्जोमि ।
-तिलोयपण्णत्ति ३१७. .........."घणतुहिणकणाउलि माहमासि सूरग्गमिकसणचउद्दसीहि णिव्वुइ तित्थंकरि पुरिससीहि ।
-महापुराण ३७१३ ३१८. माघ कृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।
शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः ॥ तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिवते तिथिः ।
--ईशान संहिता
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