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तीर्थकर जीवन
पहुँचते है २३१ और यह प्रेरणा देते हैं कि वे अपनी कन्याएँ मरीचि आदि मुनियों को समर्पित करें ।२३२ ब्रह्मा की प्रेरणा से कर्दम ऋषि ने 'कला' नामक कन्या का मरीचि के साथ पाणिग्रहण करवाया।२33 इस प्रकार स्पष्ट है कि मरीचि कपिल के बहनोई थे। पर प्रश्न है कि भागवतकार ने एक ओर ऋषभ को आठवाँ अवतार माना है और कपिल को पाँचवाँ और कपिल तथा मरीचि का समय एक ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत की दृष्टि से मरीचि भरत की अनेक पीढ़ियों के बाद आते हैं तो पूर्व में होने वाले को पाठवाँ अवतार और पश्चात् होने वाले को पाँचवाँ अवतार कैसे माना गया?
हमारी दृष्टि से भागवत में अवतारों का जो निरूपण किया गया है, वह न क्रमबद्ध है और न संगत ही है।
जैन-साहित्य में मरीचि परिवाजक के प्राचारशैथिल्य का वर्णन तो है, पर भागवत की तरह उनके विवाह का उल्लेख नहीं है।
वैदिक साहित्य के परिशीलन से यह भी ज्ञात होता है कि मरीचि श्री ऋषभ के अनुयायी थे। ऋग्वेद:3४ में काश्यपगोत्री
२३१. तत्कर्दमाश्रमपदं सरस्वत्या परिश्रितम् । स्वयम्भूः साकमृषिभिर्मरीच्यादिभिरभ्ययात् ।।
श्रीमद्भागवत स्कंध ३, अ० २४, श्लो० ६ पृ० ३१५ २३२. अतस्त्वमृषिमुख्येभ्यो यथाशीलं यथारुचि । आत्मजाः परिदेह्यद्य विस्तृणीहि यशो भुवि ।।
-भागवत ३१२४।१५।३१६ २३३. गते शतधृती क्षत्तः कर्दमस्तेन चोदितः ।
यथोदितं स्वहितः प्रादाद्विश्वसृजां ततः ।। मरीचये कलां प्रादादनसूयामथात्रये । श्रद्धामङ्गिरसेऽयच्छत्पुलस्त्याय हविभुवम् ।।
-भागवत ३।२४।२१-२२।३१७ २३४. ऋग्वेद १६
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