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________________ १२२ ऋषभदेव : एक परिशीलन जिज्ञासा प्रस्तुत की — कि प्रभो ! क्या इस परिषद् में ऐसा कोई व्यक्ति है जो आपके सदृश ही भरत क्षेत्र में तीर्थंकर बनेगा ? २१६ जिज्ञासा का समाधान करते हुए भगवान् ने कहा- स्वाध्याय ध्यान से आत्मा को ध्याता हुया तुम्हारा पुत्र मरीचि परिब्राजक " वीर" नामक अन्तिम तीर्थङ्कर बनेगा । उससे पूर्व वह पोतनपुर का अधिपति त्रिपृष्ठ वासुदेव होगा, तथा विदेह क्षेत्र की मूका नगरी में प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती होगा। इस प्रकार तीन विशिष्ट उपाधियों को वह अकेला ही प्राप्त करेगा । २१७ २१६. पुणरवि अ समोसरणे, पुच्छीअ जिरणं तु चक्किणो भरहे । अप्पुट्ठो असारे तित्थयरो को इहं भरहे ? ॥ २१७. - आवश्यक नियुक्ति० गा० ३६७ ( ख ) अह भणइ नरवरिदो ताय ! इमीसित्तिआइ परिसाए । अन्नोऽवि कोऽवि होही भरहे वासम्मि तित्थयरो ? - आवश्यक मूलभाष्य गा० ४४ मल० वृ० पृ० २४३ ( ग ) भगवं ! किमेत्थ कोऽवि हु पाविस्सइ तित्थयरलाभं ? - महावीर चरियं, गुणचन्द्र, गा० १२४ प्र० २०१८ तत्थ मरीई नामा आइपरिव्वायगो उसभनत्ता । सज्झायज्झाणजुओ एगंते भायइ महप्पा ॥ तं दाइ जिणिन्दो एव नरिंदेण पुच्छिओ सन्तो । धम्मवरचक्कवट्टी अपच्छिमो वीरनामुत्ति ॥ तथा—आइगरु दसाराणं तिविट्टु नामेण पोअणाहिवई । पियमित्तचक्कवट्टी मुआइ विदेहवासम्म || - आवश्यक नि० गा० ४२२ से ४२४ प० २४४ (ख) ताहे कलियकुलिंगं मिरिइ एगंतसंठियं भयवं । दाव जह एस जिणो चरिमो होही तुह सुओत्ति ।। एसोच्चि गामागरनगरसमिद्धस्स भारहद्धस्स । सामी तिविठुनामो पढमो तह वासुदेवारणं ॥ एसो महाविदेहे पियमित्तो नाम चक्कवट्टीवि । परमरिद्धिजुओं । Jain Education International मूयाए नयरीए भविस्सई - महावीर चरियं, गा० १२६ से १२८ १० १८ ।१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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