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ऋषभदेव : एक परिशीलन
ज्ञान कहा है उसे ही बौद्ध ग्रन्थों में प्रज्ञा कहा है और सांख्य-योग में विवेकख्याति कहा है ।१५७
भगवान् को केवल ज्ञान की उपलब्धि वट वृक्ष के नीचे हुई थी अतः वटवृक्ष आज भी अादर की दृष्टि से देखा जाता है। सम्राट भरत का विवेक
आवश्यक नियुक्ति,१५८ आवश्यक चूणि,१५९ त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र१६° आदि श्वेताम्बर जैन ग्रन्थों के अनुसार जिस समय भगवान् श्री ऋषभदेव को केवल ज्ञान की उपलब्धि हुई, उसी समय सम्राट भरत की आयुधशाला में चक्ररत्न भी उत्पन्न हुआ और इसकी सूचना
१५७. विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः ।
—योगसूत्र २।२६ १५८. उज्जाणपुरिमताले पुरी विणीआइ तत्थ नाणवरं । चक्कुप्पया य भरहे निवेअणं चेव दुण्हंपि ।।
-आवश्यक नियुक्ति, गा० ३४२ १५६. भरहस्स य चारपुरिसा णिच्चमेव दिवसदेवसिय वट्टमाणि णिवेदेति,
तेहिं तस्स णिवेदितं-जहा तित्थगरस्स गाणं उप्पन्नंति, आयुहघरिएणऽवि णिवेदितं, जहा-चक्करयणं उप्पन्नं । ताहे सो चिन्तेउमारद्धो, दोण्हपि महिमा कायव्वा, कतरं पुत्वं करेमित्ति ? ताहे भणति-तातंमि पूतिए, चक्कं पूयितमेव भवति चक्कस्सवि पूयणिज्जो, ताहे सव्विड्ढीए पत्थितो ।
--आवश्यक चूणि, जिन० पृ० १८१ १६०. प्रणम्य यमकस्तत्र, भरतेशं व्यजिज्ञपत् ।
दिष्ट्याऽद्य वर्धसे देवाऽनया कल्याणवार्तया ॥ पुरे पुरिमतालाख्ये कानने शकटानने । युगादिनाथपादानामुदपद्यत
केवलम् ।। प्रणम्य शमकोप्युच्चैः स्वरमेवं व्यजिज्ञपत् । इदानीमायुधागारे, चक्ररत्नमजायत ।
-त्रिषष्ठि १।३।५११-५१३
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