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________________ तीर्थकर जीवन ध्यान-मुद्रा में अवस्थित थे। फाल्गुन कृष्णा ग्यारस का दिन था, पूर्वाह्न का समय था, आत्म-मंथन चरम सीमा पर पहुँचा। आत्मा पर से घन-घाति कर्मों का आवरण हटा, भगवान् को केवल ज्ञान और केवल दर्शन का अपूर्व आलोक प्राप्त हुआ। जैनागमों में जिसे केवल पुरिमतालस्स नयरस्स बहिया सगडमुहंसि उज्जाणंसि नग्गोहवरपायवस्स अहे अट्टमेण भत्तरणं अपाणएरणं आसाढाहि नक्खत्तणं जोगमुवागएणं झारणंतरियाए वट्टमाणस्स अरणंते जाव जारणमारणे पासमारणे विहरइ । -कल्पसूत्र० सू० १६६ पृ० ५८ पुण्य० (ख) तित्थयराणं पढमो उसभसिरी विहरिओ निरुवसग्गं । अट्ठावओ नगवरो अग्गा भूमी जिणवरस्स ॥ छउमत्थप्परिआओ वाससहस्सं तओ पुरिमत.ले । निग्गोहस्स य हिट्ठा उप्पन्नं केवलं नाणं ।। फग्गुणबहुले इक्कारसीइ अह अट्ठमेण भत्तेण । उप्पन्नम्मि अणन्ते महन्वया पंच पन्नवए । --आवश्यक नियुत्ति गा० ३३८ से ३४० (ग) फग्गुणवहुलेक्कारसि उत्तरसाढाहिं नाणमुसभस्स । -आवश्यक नि० गा० २६३ (घ) अथ व्रतात् सहस्राब्द्यां, फाल्गुनकादशीदिने । कृष्णे तथोत्तराषाढास्यिते चन्द्र दिवामुखे । उत्पेदे केवलज्ञानं त्रिकालविषयं विभोः । हस्तस्थितमिवाऽशेष, दर्शयद् भुवनत्रयम् ।। -त्रिषष्ठि० १।३।३६६-३६७ (ङ) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति० प० ८५ अमो० । (च) समवायाङ्ग १५७ गा० ३३-५ । (छ) लोक प्रकाशः ३२ ; ५४७ । (ज) फाल्गुने मासि तामिस्रपक्षस्यैकादशीतिथौ । उत्तराषाढ़नक्षत्रे कैवल्यमुदभूद्विभोः ॥ —महापुराण, जिनसेन, २०।२६८।४७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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