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________________ प्राचार्य जिनसेन के शब्दों में काश्य तेज को कहते हैं। भगवान् श्री ऋषभदेव उस तेज के रक्षक थे अतः काश्यप कहलाये। ५४ प्रस्तुत अवसर्पिणी काल में सर्व प्रथम वैशाख शुक्ला तृतीया को श्रेयांस ने इक्षु रस का दान दिया अतः वह तृतीया इक्षु-तृतीया या अक्षय तृतीया पर्व के रूप में प्रसिद्ध हुई ।१५५ दान से वह तिथि भी अक्षय हो गई। (घ) वर्षीर्यान् वृषभो ज्यायान्, पुरुराद्यः प्रजापतिः । ऐक्ष्वाकुः [कः] काश्यपो ब्रह्मा, गौतमो नाभिजोऽग्रजः ॥ --धनञ्जय नाममाला ११४ पृ० ५७ १५४. काश्यमित्युच्यते तेजः काश्यपस्तस्य पालनात् । -~महापुराण २६६।१६।३७० १५५. राधशुक्लतृतीयायां दानमासीत् तदक्षयम् । पक्षियतृतीयेति, ततोऽद्यापि प्रवर्तते ।। श्रेयांसोपज्ञमवनौ दानधर्मः प्रवृत्तवान् । स्वाम्युपज्ञमिवाऽशेषव्यवहारनयक्रमः ॥ -त्रिषष्ठि० १।३।३०१-३०२ (ख) वैशाख सुदि तृतीयारूपं पर्वत्वेन मान्यं जातं । -~-कल्पलता सम० पृ० २०६।१ (ग) तदिनं लोके अक्षयतृतीया जाता। __-कल्पद्र म कलिका पृ० १४६ (घ) वैशाखमासे राजेन्द्र ! शुक्लपक्षे तृतीयका । अक्षया सा तिथिः प्रोक्ता कृलिका रोहिणीयुता ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003187
Book TitleRishabhdev Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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