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लालच बुरी बला ८५ तो हम साधु लोग हैं। किसी की भी धरोहर रखना पसन्द नहीं करते। इसलिए तुम अन्य स्थान पर रख सकते हो। श्रेष्ठी धनदत्त ने कहा- मुझे अन्य किसी पर भी विश्वास नहीं है। आप तो तरण-तारण जहाज हैं। कृपा कर रख लीजिए।
साधु ने कहा-देखो धनदत्त ! हम रखना तो नहीं चाहते थे। पर तुम्हारे हार्दिक-प्रेम को कैसे टाल सकते हैं ? किन्तु यह बात किसी को भी मत कहना। नहीं तो एक तरह से यहाँ जमघट मच जाएगा। और हमारी धार्मिक साधना में बाधा उपस्थित होगी।
श्रेष्ठी ने कहा-गुरुदेव ! मैं किसी को भी नहीं कहूँगा। आप इन्हें योग्य स्थान पर रख दीजिए।
साधु ने कहा-देख भाई ! हम तो हाथ लगाते नहीं हैं। तू ही अपने हाथ से अमुक स्थान पर रख दे और जब तुझे आवश्यकता हो सहर्ष आकर ले लेना। तेरी धरोहर ज्यों की त्यों पड़ी रहेगी।
श्रेष्ठी धनदत्त साधु मणिप्रभ के बताये हुए स्थान पर रत्नों को रखकर चल दिया। उसके जाने के पश्चात् मणिप्रभ ने रत्नों को अच्छी तरह से देखा। रत्न अत्यधिक मूल्यवान् थे । रत्नों को देखकर मणिप्रभ
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