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लालच बुरी बला
चन्द्रपुर नगर के बाहर एक वैष्णव साधु का बहुत बड़ा मठ था । प्रतिदिन सैकड़ों लोग उस साधु के सत्संग में आते । साधु ने अपने मधुर व्यवहार से जनमानस को जीत लिया था। नगर में धनदत्त नाम का एक श्रेष्ठी रहता था। उसके पास विराट् सम्पत्ति थी । किन्तु व्यापार में अत्यधिक नुकसान हो जाने के कारण सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। उसने सोचा- अब यहाँ पर मेरा व्यापार करना संभव नहीं है । मुझे विदेश में जाकर ही व्यापार करना चाहिए। पर मेरे पास पाँच बहुमूल्य रत्न हैं । यदि ये रत्न मैं विदेश लेकर जाऊँगा, इधर मेरा भाग्य मेरा साथ नहीं दे रहा है तो संभव है ये रत्न भी कोई चुरा ले । इसलिए इन रत्नों को यहीं पर किसी के यहाँ रख दूँ जिससे विदेश यात्रा से लौटने के पश्चात् मुझे पुनः सुरक्षित प्राप्त हो सकें। वह कुछ समय तक सोचता रहा कि रत्न कहाँ पर रखे जायँ । उसे ध्यान आया कि नगर के बाहर जो मणिप्रभ वैष्णव साधु है वह बहुत ही प्रामाणिक और निर्लोभी है । यदि
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