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भक्त की परीक्षा ८१ नहीं है कि मैं यहाँ तुमसे बातें कर सकूँ । मार्ग छोडो, मुझे जाने दो।
भील ने सनम्र निवेदन किया-आप जो भी बात हो मुझे बताने का अनुग्रह करें । मैं आपकी सेवा के लिए प्रस्तुत हूँ। नारदजी को इच्छा न होते भी हुए अन्त में कहना पड़ा-भगवान विष्णु के पेट में भयंकर दर्द है। उनके लिए किसी भक्त के कलेजे के मांस की आवश्यकता थी। मैं उसी के लिए अन्वेषणा कर रहा हूँ।
भील ने खिलखिलाकर हँसते हुए कहा- इतनी सी तुच्छ वस्तु के लिए आप इतने अधिक चिन्तित क्यों हो रहे हैं ? उसने चट से अपने हाथ की तलवार से अपना कलेजा काटकर देते हुए कहा-यह आप मेरा कलेजा ले जाकर भगवान को समर्पित कर दें।
नारद को अत्यधिक प्रसन्नता हुई। वह झूमते हुए विष्णु के पास पहुँचे। उन्होंने विष्णु को भील का कलेजा देते हुए कहा-भगवन् ! इसे प्राप्त करने के लिए मुझे कठिन श्रम करना पड़ा है। इसके लिए मैंने तीनों लोकों को छान लिया। तब जाकर मुझे सफलता मिली। __ विष्णु ने मुस्कराते हुए कहा-इसके लिए इतने
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