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७४ पंचामृत राज ने सम्भव है आपश्री को ही लक्ष्य में रखकर कहा हो। आप ही उनके लक्ष्य के केन्द्र रहे हों।
राजा ने प्रधान अमात्य को आदेश देते हुए कहा-राजकोष से दस सहस्र स्वर्णमुद्राएं देकर इस पगड़ी को ले लो और इसे अच्छी तरह राजकोष में रख दो।
प्रधान अमात्य ने राजा के आदेश को प्रतिवाद करना चाहा, वह स्वर्णमुद्राएँ देने में आनाकानी करने लगा। राजा की भौंहे तन गई । राजा ने उग्र होकर कहा-तुम्हें मेरे आदेश का पालन करना है । स्वर्णमुद्राएँ देने में क्षणमात्र का भी विलम्ब न करो। मुझे यह पगड़ी अपने पास में रखकर विश्व को बताना है कि इस पगड़ी की विशेषताओं को जानने वाला मैं ही प्रथम राजा हूँ।
प्रधान अमात्य नहीं चाहता था, पर राजा के आदेश का पालन करना उसका कर्तव्य था। उसने उसी समय दस सहस्र स्वर्णमुद्राएँ उस आगन्तुक व्यक्ति के हाथ में थमा दीं। आगन्तुक व्यक्ति ने मंत्री के हाथ में अपनी पगड़ी दे दी और राजा को नमस्कार कर शीघ्र ही वहाँ से प्रस्थित हो गया।
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