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मिथ्या अहं
राज-सभा में राजा बैठा हुआ अपने राज्य की भावी प्रगति के सम्बन्ध में गम्भीर चिन्तन कर रहा था। सारे सभासद चुप बैठे हुए थे। उसी समय राजसभा में एक व्यक्ति ने प्रवेशकर राजा को नमस्कार किया। उस व्यक्ति के सिर पर एक रंगबिरंगी पगड़ी बँधी हुई थी, जो छोटे-छोटे वस्त्रों के टुकड़ों से तैयार की गई थी। उस विचित्र पगड़ी को देखकर सभासदों के चेहरे पर एक मधुर मुस्कान खिलने लगी। राजा भी उस विचित्र पगड़ी को देखकर मुस्कराने लगा। उसने पहली बार ही इस प्रकार की पगड़ी देखी थी। आगन्तुक व्यक्ति अत्यधिक चतुर था। उसे राजा के मानस को परखने में देर न लगी। उसने अत्यन्त विनय के साथ राजा को अभिवादन करते हुए कहा-राजन् ! यह पगड़ी जो मेरे सिर पर चमक रही है, दीखने में भले ही वह छोटे-छोटे वस्त्रों का पुलिंदा दिखाई देती हो, पर इसके समान विश्व में अन्य कोई पगड़ी नही है। यह पगड़ी मुझे एक सिद्धयोगी ने दी है।
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