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७० पंचामृत -राजन् ! मैंने अपनी प्रजा को प्रत्येक सुख-सुविधाएँ प्राप्त हों, इसलिए जितने भी अधिक कर थे उनसे उन्हें मुक्त कर दिया। राज्य के प्रत्येक कर्मचारी का वेतन पहले से दूना कर दिया। स्थान-स्थान पर पाठशालाएँ, चिकित्सालय, वाटिकाएँ, वापिकाएँ आदि प्रजा की सुविधा के लिए निर्माण की गई हैं । प्रजा के प्रत्येक व्यक्ति की अपील पर पूर्ण ध्यान दिया जाता है। मगध की प्रजा बहुत ही आह्लादित है । उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं है। यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। यद्यपि प्रस्तुत कार्य के लिए पुराने राजकोष को खाली करना पड़ा है, क्योंकि दुष्काल से छटपटाती हुई प्रजा को मैं नहीं देख सका। मैं सोचता हूँ राजकोष का उपयोग भी तो प्रजा के लिए ही है । यदि प्रजा दनादन मरती रहे और राजकोष की अभिवृद्धि की चिन्ता की जाय तो उसे मैं अनुचित मानता हूँ।
मगध प्रान्तपति आसन पर बैठ भी नहीं पाये थे कि सम्राट अशोक अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए। उन्होंने कहा.-मेरी दृष्टि से प्रजा को शोषित कर प्राप्त की गई धनराशि किसी काम की नहीं है। हमें ऐसा धन नहीं चाहिए जो प्रजा को अत्यधिक कष्ट देकर प्राप्त किया जाय। प्रजा पर अनुचित कर लगाना और उस कर से
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