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६६ पंचामृत प्राप्त हुआ है। यदि आपश्री को मेरी सेवा की आवश्यकता है तो मुझे सेवा देने में किसी भी प्रकार का एतराज नहीं है । मुझे इस बात की विशेष प्रसन्नता हुई कि आपश्री के अन्तर्मानस में धार्मिक साधना के प्रति आस्था का संचार हुआ। आप जानते हैं यदि मैं अमात्य-पद के लोभ से धार्मिक साधना को छोड़कर आपकी सेवा में पहुँचता तो प्राणों से भी हाथ धोना पड़ता और साधना से भी च्युत होता। संसार के अन्दर धर्म से बढ़कर कोई चीज नहीं है। धर्म से जीवन में सुख और शान्ति का सरसब्ज बाग लहलहाने लगता है। इसलिए चाहे भले ही प्राण चले जाय तो भी हमें धर्म नहीं छोड़ना चाहिए।
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