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धर्म की महत्ता
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है कि अमात्य-पद से भी धर्म बढ़कर है। मैं उस धर्म को स्वीकार करना चाहता हूँ। मैं आज तक तुम्हारी धार्मिक साधना में जानकर बाधक बनता रहा। अब तुम निर्विघ्न साधना कर सकते हो। एक धार्मिक व्यक्ति का जीवन बहुत ही पवित्र और निर्मल होता है। उसमें तनिक मात्र भी लोभ और स्वार्थ नहीं होता। तुम्हारी देश हित, राज्यहित की पवित्र भाबना के कारण विरोधी तत्त्व राज्य का अहित नहीं कर सकते। वे मेरे को तुम्हारे विरुद्ध भड़काने की चेष्टा करते थे। कई मिथ्या आरोप लगाकर वे चाहते थे कि मैं तुम्हें हटा दूं। पर आज मुझे पता चला कि राज्य का सच्चा वफादार कौन है ? यही कारण है कि उन्होंने षड्यन्त्र रचकर तुम्हें मरवाने का प्रयास किया किन्तु तुम धार्मिक साधना में तल्लीन होने से बच गये और मेरे अंगरक्षक नापित के मन में अमात्य बनने की भावना होने से वह मारा गया।
अमात्य ने कहा-राजन् ! मुझे तनिक मात्र भी विचार नहीं है कि मैं अमात्य-पद पर रहूँ या न रहूँ। मेरे मन में तो अपार आह्लाद हुआ था कि आपकी कृपा से मुझे धार्मिक साधना करने का विशेष अवसर
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