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पंचामृत
उन्होंने पूछा-क्या आप ही अमात्य हैं ? नापित ने उन गुण्डों को अमात्य की मुद्रिका दिखाते हुए कहामें ही अमात्य हूँ। क्या तुम्हें शंका है ?
उन गुण्डों ने उसके हाथ में मुद्रिका देखी, त्यों ही एक साथ सभी ने उस पर तलवारों के प्रहार किये, जिससे देखते-देखते एक क्षण में उस नापित के प्राणपखेरू उड़ गये। वे गुण्डे वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गए।
राजा राजप्रासाद में बैठा हुआ सोच रहा था कि अभी तक अंगरक्षक नहीं आया है। हो सकता है अमात्य ने मुद्रिका देने से इनकार किया हो। मुझे स्वयं चलकर देखना चाहिए कि क्या रहस्य है ? ।
राजा घोड़े पर बैठकर अमात्य के घर की ओर चल दिया। रास्ते में भयंकर कोलाहल सुनायी दिया। राजा ने अपने अनुचरों से पता लगाया कि क्या बात है ? अनुचरों ने बताया कि कुछ गुण्डों ने आपश्री के अंगरक्षक नापित को मार दिया है। उसके हाथ में अमात्य की मुद्रिका पहनी हुई है।
राजा ने मन ही मन यह कल्पना की-हो न हो यह अमात्य की ही करतूत होगी। उसी ने नापित को मरवाया होगा। मैं जाकर अमात्य को मार दूं। पर
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