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धर्म की महत्ता ६१ पर पहुंचा । पानवाला अपनी दूकान पर अमात्य को देखकर विस्मित हुआ। क्योंकि मुद्रा पहनने के कारण उसके मन में शंका का प्रश्न नहीं उठा। उसने बहुत बढ़िया पान उसे दिया। पान मुंह में चबाता हुआ और सभी को अमात्य की राजमुद्रा बताता हुआ नाई राजसभा की ओर बढ़ रहा था।
उधर अमात्य के जो दुश्मन थे, वे सोचने लगे कि अमात्य के कारण हमारे स्वार्थ का पोषण नहीं होता। इसलिए उन लोगों ने ऐसे गुण्डे तैयार किए जो अमात्य को खतम कर सकें। वे गुण्डे अमात्य को मारने के लिए चल दिये । ये अमात्य को पहचानते नहीं थे। उन्होंने नगर में प्रवेश करते ही नगरनिवासियों से पूछा-अमात्य का मकान किधर है ? हमें अमात्य से मिलना है। उस पानवाले ने बताया-अभी-अभी अमात्य यहाँ से गए हैं। आप चाहें तो राजसभा में पहुंचने से पहले ही उनसे मिल सकते हैं। यदि वे राजसभा में पहुँच गये तो घण्टों तक फिर मिलना संभव नहीं है।
वे गुण्डे जिधर अमात्य की मुद्रिका पहने हुए नापित गया था, उसके पीछे चल दिये । नापित को
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