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धर्म की महत्ता
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संभव नहीं है । धार्मिक-साधना पहले है । धार्मिकसाधना आत्मा के लिए है जबकि राजसेवा शरीर के लिए है । मैं राज-सेवा से भी अधिक महत्त्व आध्यात्मिक साधना को देता हूँ ।
अनुचर राजदरबार में पहुँचे। उन्होंने राजा से नमक-मिर्च लगाकर बताया कि - राजन् ! आपकी आज्ञा की अवहेलना कर अमात्य साधना में तल्लीन है । यह तो आपका भयंकर अपमान है । अमात्य आपका खाना खाता है और गुण भगवान के गाता है ।
राजा का अहंकार जागृत हो उठा। उसने अपने अंगरक्षक नाई को बुलाकर कहा- तुम अमात्य के पास जाओ और उनसे कहो - या तो राजदरबार में उपस्थित होओ या अमात्य की जो मुद्रा है वह लौटा दो ।
नापित अंगरक्षक पौषधशाला में पहुँचा । उसने सगर्व राजा के आदेश को सुनाया । और कहा- या तो आप अमात्य - मुद्रा लौटाइये या स्वयं चलिए ।
अमात्य के लिए यह परीक्षा की घड़ी थी । अमात्य पद छोड़ना उपयुक्त है या पौषध परित्याग कर राजसभा में पहुँचना उचित है ? सूक्ष्ममति अमात्य ने निर्णय लिया- मुझे धार्मिक साधना में बाधक यह
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