________________
५८
पंचामृत
अमात्य की भरपेट निन्दा की थी। पर अमात्य की ऐसी कोई गलती नहीं थी जिससे राजा उसे दण्डित कर सके। ____ चतुर्दशी का दिन था । अमात्य सद्गुरुदेव के समक्ष उपाश्रय में पौषधव्रत ग्रहण करके बैठा था । राजा ने अमात्य को बुलाने के लिए अपने अनुचर को उसके घर प्रेषित किया। अमात्य-पत्नी ने कहावे राजा की अनुमति लेकर धर्मसाधना में लगे हुए हैं। इस समय वे राजा की सभा में उपस्थित नहीं हो सकते।
अनुचर पौषधशाला में पहुँचे। उन्होंने राजा के आदेश को सुनाया। अमात्य ने कहा-मैं प्रतिज्ञाबद्ध हूँ। इस समय मैं राजसभा में नहीं आ सकता। आप राजा से निवेदन कर दें। पौषध पूर्ण होने पर मैं उपस्थित हो सकूँगा।
अनुचरों ने कहा-आप धर्मसाधना के चक्कर में राजा के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं। पता है, राजा के आदेश की अवहेलना करने का क्या परिणाम आएगा? अतः पौषध को रहने दीजिए। फिर एक के स्थान पर दो पौषध कर लीजिएगा।
अमात्य ने दृढ़ता के साथ कहा-यह कभी भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org