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सती की महिमा ५५
परित्याग करें । प्रजा की सारी नारियां उनके लिए पुत्री के समान हैं । अब तो राजा के मन में भी परचाताप जागृत हो चुका है । अतः रस प्रदान करो ।
यह कहते ही आम के फलों में से रस का प्रवाह फूट पड़ा। दो ही आम से सम्पूर्ण पात्र भर
गया ।
राजा को यह समझते देर न लगी कि सती के सामने मेरा असली रूप प्रकट हो गया है । वह मुझे पहचान गयी है । कहीं यह मुझे शाप न दे दे । नहीं तो मैं नष्ट हो जाऊँगा ।
ऐसा सोचकर राजा उसके चरणों में गिर पड़ा । सती शिरोमणि ने कहा- राजन् ! आप भयभीत न बनें। हम आपकी प्रजा हैं । मैं आपको पूज्य पिता की तरह मानती हूँ । मुझे ज्ञात हो गया था कि राजा अपने पथ से भ्रष्ट हो जाएगा किन्तु मुझे यह भी विश्वास था कि राजा भोज सत्यवादी है । वह खानदानी है । इसलिए उसे रास्ते पर लाया जा सकता है । इसीलिए मैंने पहली बार पर-पुरुष से बात की है । आप समझते होंगेमेरा पतिव्रतधर्म नष्ट हो गया, पर नहीं । क्योंकि आपको अपनी वृत्ति पर स्वयं पश्चात्ताप हुआ। आप
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