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५४ पंचामृत
विराजिए । भोजन तैयार होने पर मैं आपको बुला
लूँगी ।
राजा भोज जो संन्यासी के वेष में था, उसने कहा वृक्ष के नीचे नहीं किन्तु यहीं बैठूंगा ।
- मैं
वह बैठ गया । भोजन तैयार होने पर सती शिरोमणि एक थाल में सजाकर भोजन लेकर आयी । उसके मन में अपूर्व भक्ति थी ।
भोजन परोसने के पश्चात् वह आम लेकर आई और कहा- संन्यासी प्रवर ! मैं अभी रस निकाल देती जिससे आप अच्छी तरह से भोजन कर सकें ।
आम रस से लबालब भरे हुए थे । किन्तु उसके दबाने पर भी रस नहीं निकल रहा था। सती शिरोमणि ने कहा-ए आम, मैं आज तक पूर्ण पतिव्रता रही
| मैंने स्वप्न में भी किसी भी पर-पुरुष का ध्यान नहीं किया तो क्या कारण है कि तुम रस नहीं छोड़ रहे हो ? लगता है हमारी नगरी का राजा भोज जो सत्यवादी है, किन्तु आज वह परदारा पर मुग्ध है । इसीलिए तुम्हारे में रस होने पर भी तुम रस नहीं दे रहे हो । राजा को चाहिए कि वे अपने विचार बदलें । उनके मन में जो गलत विचार उद्बुद्ध हुए हैं वे उनका
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