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सती को महिमा ५३. से आग्रह किया-मुझे सती शिरोमणि के दर्शन करने की उत्कट अभिलाषा है। . कालिदास ने कहा-राजन् ! मैं भी यह उपाय सोच रहा हूँ कि आपको उसके दर्शन कैसे हों ? गम्भीर चिन्तन के पश्चात् मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि आप संन्यासी का वेष बनाकर उसके यहाँ जावें। तभी उसके दर्शन हो सकते हैं।
राजा ने कहा-तुम्हारी युक्ति तो उचित है, पर वह विप्र तो मुझे पहचान ही लेगा। यदि वह घर में रहेगा तो उससे बातचीत भी नहीं हो सकेगी।
कालिदास ने कहा-राजन् ! पण्डित शंकर को आप राजसभा में बुलाकर जप करने के लिए कहें। इसलिए वह यहाँ जप करेगा और आप सती शिरोमणि के दर्शन कर सकेंगे।
राजा ने शंकर शर्मा को जप करने के लिए बुलाया और स्वयं संन्यासी का वेष पहनकर उसके घर पहुंचा। उसने सती शिरोमणि के द्वार पर जाकर आवाज लगाई-"भिक्षां देहि"। सती शिरोमणि ने आवाज को सुनकर कहा-महाराज ! अभी भोजन में कुछ विलम्ब है, आप कुछ क्षणों तक सामने के वृक्ष की छाया में
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