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४८ पंचामृत सरदार वहीं पर लुढ़क गया । और उसी समय नक्कारे की आवाज की गई जिससे सभी वीरों ने और महिलाओं ने डाकुओं पर एक साथ हमला किया जिससे अनेक डाकू वहीं ढेर हो गए। और कुछ डाकू अपने प्राण बचाकर भाग गये।।
जब केसरीसिंह गढ़ में पहुंचा तो उसने देखा ठाकुर साहब बेहोश पड़े हुए हैं। उन्हीं के पास सरदार की लाश पड़ी हुई है। एक युवक ठाकुर साहब को होश में लाने का उपक्रम कर रहा है। पास ही रक्त से सना हुआ खंजर पड़ा है। ठाकुर साहब को होश आया। उन्होंने केसरीसिंह से कहा-इसी युवक ने मेरे प्राण बचाये हैं।
युवक ने ठाकुर के चरणों पर गिरकर नमस्कार किया । वह युवक नहीं युवती थी जिसका नाम वीरबाला था । ठाकुर को जब मालूम हुआ कि यह नारायणसिंह की बेटी है तो उसे गले लगाते हुए कहापुत्री ! मेरे अपराध को क्षमा कर। मैंने तेरे पिता के साथ जो व्यवहार किया उसे भूल जा।
वीरबाला ने कहा- मैंने आपको बचाकर बदला ले लिया है। ... ठाकुर ने कहा--तुमने तो मेरे हृदय को ही जीत
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