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नारी का दिव्य न ४७ हूँ कि वहाँ का क्या हालचाल है। हमें किधर से और कब प्रवेश करना चाहिए।
सरदार ने कहा-तुम्हारी बुद्धि तीक्ष्ण है। तुम जाकर पहले गांव में पता लगाओ। उसके बाद हम हमला करेंगे।
वीरबाला ने गाँव में पहुँचकर अपने सभी पुराने परिचितों को सावधान किया। महिलाओं का एक संगठन बनाया और कहा-जब तक हमला न हो वहाँ तक पहले किसी प्रकार की कोई बात जाहिर न हो। सारी व्यवस्था ठीक कर वह पुनः दल में जाकर मिल गई।
आधी रात में जब चारों ओर अन्धकार था, डाकूदल ने गांव पर आक्रमण किया। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सभी गहरी निद्रा में सो रहे हैं। वीरबाला के संकेत से डाकू दल तीन भागों में विभक्त हो गया। सरदार कुछ साथियों को लेकर गढ़ के द्वार पर पहुंच गया। वहाँ पर केसरीसिंह अपने वीर साथियों के साथ छिपकर खड़ा था। दोनों ही दल परस्पर भिड़ गए। सरदार अन्धेरे में गढ़ में प्रवेश कर गया और ठाकुर साहब पर झपट पड़ा। किन्तु सरदार के पीछे से सरदार पर किसी ने ऐसा तीक्ष्ण प्रहार किया कि
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