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नारी का दिव्य रूप ४५ चल दी। वह कुछ ही दूर पहुंची कि वही दल जो बीसलगाँव को लूटने जा रहा था, उसे मिल गया। उस दल ने वीरबाला को घेर लिया। वह अकेली थी और उनका दलबल अत्यधिक था जिसके कारण वह उनसे जूझ नहीं सकती थी। वीरबाला ने मन-हीमन सोचा कि इन्हें ऐसा छठी का दूध पिलाऊंगी कि ये भी याद करें। उसने दल के अधिनायक सरदार से कहा-क्या आप बीसलगाँव को लूटने जा रहे हैं ?
सरदार-हाँ, यही विचार है।
वीरबाला-क्या आप मुझे अपने साथ ले जा सकेंगे?
सरदार-तुम हमारे साथ क्यों चलना पसन्द करती हो ?
वीरबाला ने सरदार से कहा-बीसलगाँव के ठाकुर के साथ मेरी दुश्मनी है। मैं बदला लेना चाहती हूँ। आपका साथ मिल जाने से बदला लेने में सहलियत होगी।
सरदार-क्या तुम्हें नाचना-गाना भी आता है ? तुम्हें मेरा मन बहलाव करना होगा। मैं तुम्हारे रूप पर मुग्ध हूँ। साथ ही तुम्हें हमारे दल के साथ पुरुषवेष में रहना होगा।
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