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नारी का विव्य
युवक ने अपना सिर नीचा करते हुए कहा- मैं तुम्हारे दुश्मन रणधीरसिंह का पुत्र केसरीसिंह हूँ ।
युवती ने जरा गम्भीर होकर कहा- मेरे पिता की आत्मा को शांति प्रदान करने वाला आज बड़ा ही सुनहला अवसर मिला है । मैं चाहूँ तो अभी बदला ले सकती हूं।
केसरीसिंह ने कहा- मैं तुम्हारा अपराधी हूँ । क्योंकि मेरे ही पिता ने तुम्हारे पिता के साथ बिना विचार किए दुर्व्यवहार किया है। पर इस समय मेरे मानस में एक गहरी चिन्ता सता रही है । और वह यह है कि आज बीसलगाँव पर एक भयंकर आपत्ति आनेवाली है । मुझे एक व्यक्ति के पास सारे कागजात मिले हैं जिसमें बीसलगाँव पर आक्रमण करने का उपक्रम है । पिता श्री बिलकुल ही अनजान हैं। यदि बीसल - गाँव की रक्षा न हुई तो शताधिक महिलाओं का सतीत्व नष्ट हो जाएगा। सैकड़ों युवक मारे जायेंगे । सारे गाँव में कुहराम मच जाएगा । और मेरे संगीसाथी इस जंगल में बिछुड़ गए हैं । पहले मैं उनकी खबर लूौं या अपने पिता को सूचना दू - कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।
वीरबाला ने कहा- आपने बहुत दुःखद समाचार
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