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४२ पंचामृत
युवती ने कहा- ठाकुर रणधीरसिंह ने मिथ्यावादियों के कहने में आकर मेरे पिता की सारी सम्पत्ति छीन ली और उन्होंने पिता को गाँव से निकाल भी दिया । मेरे माता-पिता मुझे लेकर यहाँ पर आकर बसे । वे प्रस्तुत घटना से इतने दुःखी हुए कि वे अन्दर ही अन्दर घुलते रहे और कुछ ही दिनों में उन्होंने सदा के लिए आँखें मूंद लीं। कुछ दिनों के पश्चात् माताजी भी चल बसीं । अब मैं यहाँ अकेली रहती हूँ ।
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युवक केसरीसिंह ने पूछा- क्या तुम्हें मुझ अपरिचित युवक को यहाँ लाते हुए भय नहीं लगा ?
उस बाला ने मुस्कराते हुए कहा - भय वहाँ होता है जहाँ मन में वासना हो । मेरे मन में आपको बचाने की भावना थी । आपका कष्ट मैं देख न सकी । मेरे हृदय की पुकार हुई कि मेरा प्रथम कर्तव्य आपको जीवनदान देने का है । इसलिए मैं आपको यहाँ ले आई । मुझे किसी भी प्रकार का भय नहीं है । मेरे मन में एक ही बात कचोट रही है कि मैं ठाकुर साहब से बदला लू ँ । उनके किये गये अन्याय का फल उन्हें बता दु । तभी मेरे पिताश्री की आत्मा को शांति प्राप्त हो सकेगी । छोड़िए इस चर्चा को, बताइए आपका परिचय क्या है ? आप किस कुल के श्रृंगार हैं ?
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