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________________ ४० पंचामृत गया। उधर सूर्यास्त हो रहा था। वह एक वृक्ष से अटककर वहाँ रुक गया था। नदी में पत्थरों की चोट लगने के कारण भयंकर वेदना हो रही थी और सहज ही वह पड़ा-पड़ा कराह रहा था। पहाड़ की टेकरी पर एक झोंपड़ी थी। उसमें एक बाला रहती थी। वह पानी भरने के लिए नदी पर आई। उसने किसी के कराहने की आवाज सुनी। वह इधर ही चल दी। उसने युवक की दयनीय अवस्था देखी। हाथ का सहारा देकर युवक को उठाया और कहा-मेरी कुटिया पास में ही है। मेरा सहारा लेकर आप धीरे-धीरे वहाँ पर चलें। . युवक केसरीसिंह उसके सहारे से कुटिया में पहुँचा। उस बाला ने खाट पर युवक को सुला दिया तथा जख्मों पर मरहमपट्टी कर दी। जंगली दवा दी जिससे रातभर में उसका दर्द मिट जाय । केसरीसिंह के वस्त्र बदल दिये । आग से उसके शरीर को तपा दिया जिससे उसकी सारी थकान मिट जाय।। __ केसरीसिंह को गहरी नींद आ गई। सूर्य उदय के पूर्व ही उसकी नींद खुली । उसने देखा उसकी प्राणरक्षिका पहले ही उठकर कुटिया की सफाई कर रही थी। उसने केसरीसिंह को गरमागरम दूध पिलाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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