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नारी का दिव्य रूप
बीसलगांव के ठाकुर रणधीरसिंह के एक पुत्र हुआ। उसका नाम केसरीसिंह रखा गया। नाम के अनुरूप ही वह वीर था। युवावस्था आने पर उसकी वीरता की धाक चारों ओर फैल गई थी। एक दिन वह अपने संगी-साथियों के साथ प्रातःकाल घोड़े पर बैठकर घूमने निकला। घोड़े सरपट दौड़े जा रहे थे। प्राकृतिक सौन्दर्य सुषमा का आनन्द लेते हुए वे आगे बढ़ रहे थे। एक साथी ने कहा-देखें, किसका घोड़ा आगे बढ़ता है ? उसका कहना हुआ कि केसरीसिंह ने अपने घोड़े को एड़ लगा दी। देखते ही देखते घोड़ा पवन-वेग की तरह अन्य संगी-साथियों को छोड़कर आगे बढ़ गया। घोड़ा इतनी तेजी से दौड़ रहा था कि उसे रोकने का प्रयास करने पर भी रुक नहीं रहा था। घोड़ा दौड़ता हुआ भयानक जंगल में पहुँच गया जहाँ चारों ओर हिंसक पशुओं का बाहुल्य था। घोड़ा थक चुका था। वह वहीं जंगल में मन्द गति से चलने लगा। उस समय केसरीसिंह के कर्ण-कुहरों में किसी
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