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३६ पंचामृत सहयोग देंगे। किन्तु वे ऐसे निकले कि पूछो मत । एक नम्बर के वेश्यागामी और जुआरी । उन्होंने मेरी पूँजी को ही समाप्त कर दिया।
पत्नी ने कहा-क्या आज भी तुमने हार बचा लिया ? जौहरी-यदि बचाता नहीं तो फिर क्या करता? तुम सभी के भरण-पोषण के लिए मुझे सब कुछ करना पड़ता है। ले, यह हार, इसे अपने पास सँभालकर रख ले।
ज्यों ही जौहरी ने हार अपनी पत्नी की ओर बढ़ाया त्यों ही प्रधान अमात्य ने उसके घर में प्रवेश किया। उसके पीछे गुप्तचर विभाग के अधिकारी भी आ गये। उन्होंने रंगे हाथों जौहरी को पकड़ लिया।
दूसरे दिन राजसभा में सभी राजा के न्याय को सुनने के लिए उपस्थित हुए। प्रधान अमात्य ने कहा -राजन् ! चन्द्रहार को चुराने वाला और कोई नहीं यहीं जौहरी है। उसने अपने पास रखे हुए चन्द्रहार कों राजा के सामने रखते हुए कहा-यह है वह चन्द्रहार जो गायब हो गया था। यह चन्द्रहार मैंने जौहरी के मकान से ही प्राप्त किया है। इसने महारानी की तरह मेरी धर्मपत्नी को भी धोखा देने का प्रयास किया। जिससे इसका सारा रहस्य हमें ज्ञात हो गया।
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