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________________ बुद्धि १५ मालूम यहाँ भी चोरी होती है। अरे, वह हार तो एक लाख की कीमत का था । अमात्य - पत्नी ने कहा- घबराओ मत, अच्छी तरह से घर जाओ । एक लाख रुपया तुम्हारे घर पहुँचा दिया जाएगा । जौहरी आभूषणों को समेटकर चल दिया। उसके जाने के पश्चात् अमात्य - पत्नी ने अपने पति से कहावेष परिवर्तन कर उसके पीछे जाइए। अमात्य ने पाँचदस गुप्तचर विभाग के सैनिक भी अपने साथ ले लिये और उसके पीछे चल दिये । जौहरी एक सामान्य मकान के सामने रुका । द्वार खटखटाया । द्वार खुलते ही अनेक चुन्न -मुन्न ओं ने उसे घेर लिया । झुंझलाकर जौहरी ने कहा - इस विशाल फौज ने तो मेरा नाक में दम कर दिया है । जौहरी - पत्नी ने कहा- पुत्रों पर इतना क्यों बिगड़ते हो ? दुनिया तो पुत्रों के लिए तरसती है और तुम उन पर गुस्सा होते हो । आज तुम्हारा चेहरा कुछ प्रसन्न दिखाई दे रहा है । लगता है आज भी तुमने कोई मुर्गी फँसाई है । जौहरी ने कहा- इतनी विशाल फौज हैं जिसमें दोनों बड़े पुत्रों पर आशा थी कि वे मुझे वृद्धावस्था में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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