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बुद्धिाल दूसरी पेटी लेने के लिए : वह बाहर गया। उस समय महारानी भी आवश्यक शारीरिक, कार्य की निवृत्ति हेतु अन्दर गई थी। सांवलसिंह जौहरी के साम बाहर तक गया। जब जौहरी लौटकर आया तो उस समय महारानी वहाँ नहीं थी। सांवलसिंह पुनः अपने स्थान पर खड़ा था।
जौहरी ने सभी आभूषण देखे । किन्तु चन्द्रहार नहीं था। चन्द्रहार की कीमत पच्चीस लाख की थी। चन्द्रहार कैसे गायब हो गया ?, यह बात किसी की भी समझ में नहीं आ रही थी। जब चन्द्रहार न मिला तो जौहरी ने दुःखी होकर कहा- मुझे क्या पता था कि राजमहल में भी चोरी हो जाती है। यदि ऐसा पता होता तो मैं यहाँ आता ही नहीं।
जब यह बात सांवल सिंह ने सुनी तो उसने उसी क्षण जौहरी को राजमहल से बाहर निकाल दिया। जौहरी ने राजा संग्रामसिंह से न्याय की प्रार्थना की और संग्रामसिंह ने महारानी को आजन्म कारावास की सला प्रदान की।
प्रधान अमात्य ने प्रस्तुत कार्य के निर्णय हेतु सात दिन का समय लिया था। पाँच दिन तक अमाप अन्वेषणा करते रहे। पर कोई भी तथ्य उन्हें प्राप्त
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