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३२ पंचामृत कहेगी कि महाराजा ने न्याय नहीं किया। महारानी का प्रश्न आने पर वे विचलित हो गये।
प्रधान अमात्य ने कहा-हम यह नहीं चाहते कि महारानी को बिनो अपराध के दण्ड दिया जाय। यदि महारानी का अपराध है तो उसे अवश्य ही दण्ड मिलना चाहिए। इसी में न्याय-सिंहासन की पवित्रता और निर्मलता रही हुई है। यह नहीं कि अपराधी बच जाय और निपराधी दण्ड का भागी बने।
महामात्य के तर्क के सामने सभी निरुत्तर थे। प्रतिदिन जब भी न्याय होता था सभी लोग बड़ी उत्सुकता से राजा के न्याय को सुनते और आनन्दविभोर होकर उसके न्याय की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते। पर एक जौहरी के अतिरिक्त सभी राजा के न्याय से असंतुष्ट थे। बात यह थी कि एक जौहरी श्रेष्ठ आभूषणों को लेकर राजमहल में पहुँचा था। महारानी ने जौहरी को अपने निजी कक्ष में आने की अनुमति दी थी। वहाँ पर महारानी, जौहरी और अंगरक्षक सांवलसिंह के अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति नहीं था। सांवलसिंह कक्ष के द्वार पर सावधानीपूर्वक खड़ा था। जौहरी ने एक आभूषणों की पेटी कक्ष के बाहर रखी थी। जब एक पेटी वह महारानी को दिखा चुका तब
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