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३० पंचामृत
कुछ समय के पश्चात् महामात्य अपने आसन से उठे। उन्होंने राजा को नमस्कार कर कहा--आज दिन तक महाराजा के न्याय को कोई भी चुनौती नहीं दे सका है । पर आज मैं महाराजा के न्याय को चुनौती देने का साहस कर रहा हूँ। मैंने गहराई से चिन्तन किया और उस चिन्तन के आधार से मैं साधिकार कह सकता हूँ कि महारानी ने चोरी नहीं की है। अतः महाराजा से मैं नम्र निवेदन करता हूँ कि वे अपने न्याय पर पुनः विचार करें।
राजा ने प्रधान अमात्य की ओर देखकर कहातो फिर तुम्हीं बताओ कि चोर कौन है ?
__ अमात्य ने निवेदन किया-मैं इस समय पूर्ण और सही निर्णय देने में असमर्थ हूँ। किन्तु मैं आपसे निवेदन करूंगा प्रस्तुत काण्ड की सम्यक् प्रकार से जाँच कराई जाय। केवल मेरी ही नहीं, अन्य प्रजागण की भी यही राय है।
जौहरी ने कहा-राजन, अब जाँच की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि आपश्री को इस सम्बन्ध में पूर्ण विश्वास हो चुका है। यदि जाँच की गई तो संभव है मुझे न्याय न मिले ।
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