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गुणों की महत्ता २७ घबरा रहे हो। यह घर आपका नीलाम नहीं हुआ है। यह तो आपका ही है।
शंकर ने निवेदन किया-आप घर के मालिक हैं। मैं तो आपका अनुज हूँ। मेरी संपत्ति पर आपका पूर्ण अधिकार है। यदि समय पर भाई ही भाई के काम न आये तो और कौन काम आएगा?
श्याम की आँखों से आँसू बरस रहे थे। वह शंकर के पैरों में झुकने के लिए आगे बढ़ना चाहता था कि शंकर ने उसके हाथ थाम लिये । श्याम ने कहा-भाई ! मुझे क्षमा करो। मैंने तुम पर जो अन्याय किया है, तुम्हारे साथ जो अमानवीय व्यवहार किया है, उसे स्मरण करके ही मेरा मन ग्लानि से भर रहा है।
शंकर भी फफक-फफक कर रो पड़ा-भाई ! माफी तो मुझे माँगनी चाहिए। आप इतने संकट में रहे । मुझे पता ही न चला । मुझे इस समय से पहले आकर सहयोग करना चाहिए था।
श्याम को विचार आया-केवल बड़ा बनने से ही व्यक्ति बड़ा नहीं होता; जब तक उसमें सद्गुणों का विकास नहीं होता। मैं केवल वैसे ही बड़ा हूँ, किन्तु मेरा भाई सद्गुणों में कितना बड़ा है ?
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