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पंचामृत
था, अतः सात लाख में शंकर ने वह भव्य भवन खरीद लिया। शंकर ने उसी समय सात लाख का चेक काटकर अपने भाई श्याम के हाथ में थमा दिया। श्याम नीचे मुंह किये हुए था। उसने शंकर की ओर देखा भी नहीं था। किन्तु ज्यों ही शंकर ने सात लाख का चेक उसके हाथ में दिया तो उसकी तन्द्रा टूट गई। उसे विश्वास ही नहीं था कि उसका भाई शंकर इतना धनवान हो गया है जो एक साथ सात लाख रुपया दे सकता है। शंकर ने अपने ज्येष्ठ भ्राता के चरणों में नमस्कार करते हुए कहा-आप इन सात लाख रुपयों से जो जितना मांगता हो वह कर्जदारों को चुका दो। और भी आवश्यकता हो तो मुझे सूचित करो जिससे मैं उसकी पूर्ति कर सकूँ।
श्याम के मुह से शब्द भी नहीं निकल रहे थे। वह सोच रहा था-एक मैं हूँ जिसने इसके साथ कितना दुर्व्यवहार किया। यह मेरे पास आशा लेकर आया था। किन्तु इसकी सारी आशाओं पर तुषारपात हुआ। मेरी दानवता को धिक्कार है कि मैंने द्वारपाल से कहकर इसे धक्का देकर निकलवाया था और एक यह है जो कठिन श्रम से इकट्ठे किये हुए सात लाख रुपये मुझे दे दिये और यह कह रहा है-भाई, क्यों
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