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२४ पंचामृत
बेचकर उस पैसे से एक नई जमीन खरीद ली । दोनों ही परिश्रम से खेती करने लगे। उस वर्ष भी बहुत ही अच्छी फसल हुई, जिसे बेचकर उसने नई जमीन खरीद ली। इस प्रकार प्रतिवर्ष वह खेती करके नई जमीन खरीदता रहा । दिन-प्रतिदिन उसकी खेती बढ़ती रही। कुछ ही वर्षों में शंकर एक बहुत बड़ा जमींदार हो गया ।
श्याम को एक दिन व्यापार में लाखों का घाटा लग गया । माल गोदामों में कर्मचारी की असावधानी से आग लग गई, जिससे सारा माल देखते ही देखते जलकर राख हो गया। सारे नगर में यह सूचना प्रसारित हो गई कि श्याम श्रेष्ठी का व्यापार में दीवाला निकल गया है। अतः जिन लोगों ने श्याम को लाखों रुपयों का कर्ज दिया था वे सभी एक साथ माँगने के लिए पहुँच गये । पर श्याम के पास उस समय कुछ नहीं था । अतः वह कैसे देता ? पर व्यापारियों को कहाँ सन्तोष था ? सभी व्यापारियों ने मिलकर श्याम के भव्य भवन को नीलाम करने का निश्चय किया ।
श्याम गिड़गिड़ाया कि मैं कुछ ही दिनों में ब्याज सहित ऋण चुका दूंगा । आप जरा धैर्य रखिए । पर
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