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गुणों की महत्ता २३
से चल दिया । उसका हृदय काँप रहा था । अज्ञात आशंका से घर पर हताश और निराश होकर पहुँचा । उसके पहले ही उसके पुत्र राम ने सदा के लिए आँख मूँद ली थी । उसकी पत्नी सिर पीट-पीट कर रो रही थी । पत्नी की दयनीय स्थिति को देखकर वह भी रो पड़ा। उसे अनुभव हुआ कि गरीबी कितनी बुरी चीज है ।
शंकर ने अपने प्यारे लाल के शव को नदी में बहाया । लकड़ी के लिए भी उसके पास पैसा नहीं था । शंकर की पत्नी ने कहा- बिना अर्थ के जावन व्यर्थ है । इस प्रकार कब तक भूखे-प्यासे रह सकते हैं ? हमारे पास अन्य कोई साधन नहीं है जिससे कि पैसा प्राप्त हो सके। लोग कहते हैं कि धरती सोना उगलती है । आपके पास धरती है । हम दोनों ही कठिन श्रम करके इतनी अच्छी खेती करेंगे कि हमारी दरिद्रता मिट जायगी । भाग्य सदा ही परिश्रमी व्यक्तियों का साथ देता है ।
दोनों ही जी-जान से खेती में जुट गये । उस वर्ष खेत में बहुत ही बढ़िया फसल पैदा हुई । शंकर की प्रसन्नता का कोई पार न था । उसे अनुभव हुआ धरती सोना किस तरह उगलती है ? उसने कुछ अनाज
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