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________________ २२ पंचामृत है। उससे मिलने से मेरी प्रतिष्ठा जो समाज में है वह धूल में मिल जाएगी । इसलिए नहीं मिलना ही श्रेयस्कर है । श्याम ने क्रोधित मुद्रा में ही द्वारपाल को कहा- कौन व्यक्ति चिल्ला रहा है ? उसे दूर भगा दो। मैं उससे मिलना नहीं चाहता । शंकर को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका भाई उसके साथ इस प्रकार का व्यवहार करेगा । उसे अतीत की मधुर स्मृतियाँ हो आई कि मैं अपने प्यारे भाई के लिए सदा सर्वस्व न्योछावर करता रहा हूँ । मेरे पढ़े-लिखे न होने के कारण भाई ने मेरी सारी संपत्ति पर अधिकार कर लिया और मुझे जरा-सी खेती दे दी। तो भी मैंने कभी भी 'कुछ भी नहीं कहा। लगता है श्याम को गलतफहमी हो गयी है । इसीलिए उसने नौकर को यह आदेश दिया है । शंकर पुनः जोर से चिल्लाया- भैया ! जरा इधर देखो। मैं तुम्हारा छोटा भाई शंकर हूँ । जरा एक बार मुझे देखो | राम बहुत ही बीमार है । इसलिए मैं तुम्हारे पास सहयोग के लिए आया हूँ । किन्तु श्याम तो अपने धन के नशे में चूर था । उसके संकेत से द्वारपाल ने शंकर को धक्का देकर वहाँ से निकाल दिया । शंकर किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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