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गुणों की महत्ता २१ न सुना । उसका मन जल्दी से जल्दी भाई से मिलना चाहता था । द्वारपाल ने कहा-जब तक श्याम सेठ की अनुमति नहीं आ जाएगी वहाँ तक तुम अन्दर प्रवेश नहीं कर सकते। ___ शंकर ने ऊपर देखा। गवाक्ष में उसका भाई बैठा हुआ है, पास में भाजाई बैठी हुई है और दोनों भोजन कर रहे हैं। शंकर ने नीचे से ही आवाज दीभैया ! मैं आया हूँ। श्याम ने ज्यों ही शंकर का आवाज सुनी, वह चौंक उठा। उसने नीचे देखा तो शंकर खड़ा था। शंकर को देखकर उसने उसी समय दृष्टि फेर ली और खाने में तल्लीन हो गया। शंकर ने सोचा, लगता है कि भाई ने मुझे देखा नहीं है। यदि देखा होता तो मुझे बिना बुलाये नहीं रहता। उसके मन में घबराहट थी कि जिस बच्चे के लिए उसने अपनी सारी संपत्ति फूंक दी वह कहीं भूख से मर न जाय? एक-एक पल उसे एक-एक वर्ष की तरह लग रहा था। उसने पुनः जोर से आवाज दी-भैया ! मुझे बहुत ही आवश्यक कार्य है। भैया ! मुझे जल्दी बुलाओ। द्वारपाल को कह दो कि मुझे तुम्हारे पास आने दे।
श्याम शंकर से मिलना नहीं चाहता था। वह जानता था कि मेरा भाई दरिद्रनारायण का अवतार
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