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पंचामृत
शंकर नहीं चाहता था कि भाई के पास जाकर हाथ पसारे; पर तीन दिन से भूखे-प्यासे परिवार को देखकर उसका मन आकुल-व्याकुल हो उठा। राम व्याधि से तो मुक्त हुआ किन्तु क्षुधा के कारण उसे तीव्र ज्वर आ गया। माँ के आँचल में मुह छिपाकर कहने लगा कि माँ ! बहुत जोर से भूख लग रही है। कुछ खाने को देना। पर, घर में कोई भी वस्तु नहीं थी जिसे दिया जा सके। पत्नी ने शंकर से कहा-देखो न, आपका यह लाड़ला एक मुट्ठी अनाज के लिए मर रहा है। अब तो अपने लखपति भाई के पास जाकर ले आओ न । यदि कुछ ही विलम्ब हो गया तो यह छटपटाकर प्राण त्याग देगा।
शंकर विवश होकर अपने भाई के भव्य भवन को चल दिया। मन में नई उमंग थी-मेरा भाई मुझे देखकर बहुत ही आह्लादित होगा। वह अनाज से तो क्या, रुपयों से मेरी थैली भर देगा। मन में अनेक रंगीन कल्पना करते हुए ज्यों ही वह भव्य भवन के द्वार पर पहुँचा त्यों ही द्वारपाल ने अन्दर जाने के लिए स्पष्ट इनकारी कर दी। शंकर ने द्वारपाल से अत्यधिक अनुनय-विनय किया कि मुझे अपने भाई के पास जाने दिया जाय, पर द्वारपाल ने उसकी एक
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