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दुर्गुणों की उपेक्षा
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कुछ दुष्कृत्य कर दिया तो मेरा जीवन ही बिगड़ जाएगा। वह रात-दिन इसी चिन्ता में घुल रहा था । सन्निकट के गाँव में एक युवक था । उसके पास पैसा नहीं था । किन्तु वह था स्वस्थ और बलिष्ठ । श्रेष्ठी ने कहा -- यदि तुम मेरी लड़की के साथ विवाह करोगे तो मैं तुम्हें दहेज के रूप में इतना धन दूँगा कि तुम अच्छी तरह से व्यापार कर अपने जीवन को आनंदित बना सकोगे । युवक ने श्रेष्ठी के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया । श्रेष्ठी ने अपनी पुत्री के स्वभाव के सम्बन्ध में भी उसे स्पष्ट रूप से बता दिया । युवक ने कहा— पूज्यवर ! आपको चिंतित होने की आवश्यकता नहीं । मेरे पास इस रोग की रामबाण दवा है । मैं आपकी पुत्री का यह रोग जड़-मूल से नष्ट कर दूंगा ।
श्र ेष्ठी ने उल्लास के क्षणों में अपनी पुत्री का पाणिग्रहण उस युवक के साथ कर दिया । पूरा घर बसाने का सामान भी उसने उस युवक को दिया था । गाड़ियों में सामान लदा हुआ था और वह पत्नी सहित ससुर- गृह से प्रस्थित हुआ। युवक का चेहरा गंभीर था । श्र ेष्ठी-पुत्री युवक की गंभीर मुद्रा को देखकर ही स्तंभित हो गई । उसके साथ बात करने का साहस
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